सवाल का हमारी जिंदगी में बड़ा अहम रोल है। सवाल के जरिए ही हम अपनी जानकारी का विस्तार करते हैं । सवाल ही हमारी सोच और चिंतन को आधार देते हैं। जितने भी आविष्कार हुए हैं वे सब किसी न किसी सवाल के जवाब ही तो हैं। यों भी आधुनिक युग को प्रश्नाकुलता का युग कहा जाता है। जहाँ मध्यकाल में श्रद्धा और विश्वास जीवन के केंद्र में था वहीं आधुनिक काल में जीवन के केंद्र में प्रश्न या सवाल आ गया है क्योंकि आधुनिक जीवन वैज्ञानिकता और तर्कशीलता का युग है और तर्क सवाल के सहारे ही आगे बढ़ता है।
सवाल का प्रयोजन यों तो कुछ जानने की इच्छा समझा जाता है पर कुछ लोग ‘कुछ बताने की इच्छा’ से प्रेरित होकर सवाल करते हैं। सवाल के जरिए पहले वे लोगों की जानकारी की थाह लेते हैं फिर उन्हें बताते हैं कि सच्चाई कुछ और है। दरअसल सच्चाई कुछ भी हो, वे जो बताना चाहते हैं उसे बहुत देर तक पेट में रख पाना उनके लिए संभव नहीं होता और वे उसे अपने मुखारबिंद से निकालने के लिए लालायित रहते हैं। ऐसे लोग आत्मनिर्भर होते हैं - कोई पूछे तब वे बताएं, इस पथ का अनुगमन करने पर उन्हें अपने आचरण में परनिर्भरता की बू आती है। अपने ही प्रश्नों से वे सामने वाले में खास तरह की जिज्ञासा जगाते हैं और अपने भीतर का सारा ज्ञान बवंडर दूसरे के ऊपर उलट देते हैं और लगे हाथों अपने रौब-रुतबे में श्रीवृद्धि भी कर लेते हैं। समझदार लोग भीड़ में अपने को महत्वपूर्ण बनाने के लिए इसी हथियार का इस्तेमाल करते हैं। हो न हो, रेलगाड़ी में सफर करते हुए आपका भी ऐसे लोगों से वास्ता पड़ा हो। सवाल का उद्देश्य किसी को कुछ न करने का निर्देश देना भी हो सकता है । जब कोई दमदार आदमी रौब से साथ किसी कमजोर आदमी से पूछता है कि यहाँ गड्ढा क्यों खोद रहे हो, तो वस्तुतः वह यही कह रहा होता है कि यहाँ गड्ढा मत खोदो। सवाल दूसरे की दुखती रग पर उँगली रखने का बड़ा उपयोगी साधन है। मसलन किसी का बच्चा परीक्षा में अच्छा न कर पाया हो और उससे पूछा जाए कि इस साल रिजल्ट कब आ रहा है, तो बड़े भोलेपन के साथ पूछा गया यह चतुर प्रश्न सामने वाले का मूड खराब करने का माद्दा रखता है। जिनके जीवन का चरम लक्ष्य ही दूसरों को आहत करना है वे इस साधन का प्रचुर प्रयोग करते पाए जाते हैं।
सवाल कोई लोकव्यवहार में इस्तेमाल होने वाली टेकनीक मात्र नहीं है। अच्छी अध्यापन शैली में भी सवाल को बड़ा महत्व दिया गया है। अध्यापक सीधे-सीधे विद्यार्थियों को विषय की जानकारी देने लगें, यह अच्छी शैली नहीं समझी जाती। इसके विपरीत पहले किसी सवाल के जरिए विद्यार्थियों में कौतूहल पैदा करें, उनको अपने दिमाग पर जोर डालने दें और फिर अगर जवाब मिल जाए, तो सवाल-जवाब का सिलसिला तब तक आगे बढाएं, जब तक कि उनसे जवाब देते न बने, और तब विषय को विस्तार से समझाएं। इससे रोचकता तो पैदा होती ही है, बात भी विद्यार्थियों के मनोमस्तिष्क में गहरे उतर जाती है क्योंकि उनकी जिज्ञासाएं जाग्रत होने के कारण उनकी ग्रहणशीलता बढ़ी हुई होती है।
कभी-कभी सवाल सवाल नहीं होते । देखने में तो वे बिलकुल सवाल जैसे लगते हैं, मगर वे न तो कुछ पूछ रहे होते हैं न पूछने का नाटक ही कर रहे होते हैं। वे तो मात्र कुछ कह रहे होते हैं, जिन्हें किसी जवाब की दरकार नहीं होती। किसी की वाहावाही करने के उद्देश्य से अकसर लोग कह देते हैं - ‘क्या बात है।’ अब सामने वाला अगर बुद्धि से पैदल हो और कहे कि कि ‘कोई बात नहीं है’ तो तारीफ करने वाला अपना सिर धुनने के अलावा और क्या कर सकता है। कुछ ऐसे भी प्रश्न होते हैं जिनके एक से ज्यादा उत्तर हो सकते हैं । यद्यपि पूछने वाले का आशय स्पष्ट होता है, तो भी कुछ लोग प्रश्न को अलग ही दिशा में ले जाते हैं। एक बार एक सज्जन ने अपने मित्र से पूछा - ‘भाभी जी कैसी हैं ?’, उत्तर मिला ‘सुंदर हैं।’
सवाल के जवाब भी कई प्रकार के होते हैं। सीधा जवाब सबसे सरल होता है, लेकिन आज की दुनिया के समझदार लोगों का अघोषित तौर पर मानना है कि ऐसा जवाब देने वाले व्यक्ति भी जीवन में सरल ही रह जाते हैं और दुनिया उनका कोई खास नोटिस नहीं लेती। मसलन आपको राह चलते कोई पूछे कि क्या प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है और आप हाँ या ना में उत्तर दे दें तो उससे आपके प्रभाव का खास विस्तार नहीं होगा, पूछने वाला अच्छा महसूस नहीं करेगा, सो अलग। इसलिए तथाकथित समझादार लोग सीधे जवाब देने के बजाय जवाब में रोचकता का सन्रिवेश करने में यकीन रखते हैं। यह अलग बात है कि जिसे वे रोचकता समझते हैं उसे सामने वाला कुछ और भी समझ सकता है। एक बार ट्रेन में दो मित्र अपने शहर आगरा के बारे में बातचीत करते जा रहे थे। पास बैठे मुसाफिर ने बातचीत में शामिल होने की गरज से पूछा कि आगरा क्या मथुरा के पास पड़ता है ? तो मित्रों में से एक ने जवाब दिया - ‘अरे जनाब, बिलकुल पास, इतना पास कि आगरा से पत्थर फैकों तो मथुरा में खड़े आदमी का सिर बड़े मजे से फूट जाएगा।’ मुसाफिर ने बातचीत में शिरकत करने का विचार त्याग दिया। वैसे एक बात यह भी है कि सवाल का सीधा जवाब देने से सामने वाले का हौसला बढ़ता जाता है और वह आगे और सवाल पूछता जाता है। जैसे अगर आप कमेंट्री सुन रहे हों, और पास से निकलते हुए किसी आदमी ने स्कोर पूछा और आपने सहज प्रसन्नता के साथ बताया कि 225 रन, तो वह आगे पूछेगा कि कितने विकेट हुए, आपने कहा - चार। अब उसकी हिम्मत और बढी तो पूछेगा कौन-कौन आउट हुआ, किसी की सेंचुरी लगी क्या, विकेट किसे मिले..... वगैरह-वगैरह। इसलिए समझदार लोग पहले सवाल के जवाब में ही कहते हैं कि कमेंट्री आ रही है, सुन लीजिए।
कभी कभी लोग सवाल का जवाब भी सवाल से देते हैं। सयानों का मानना है कि अप्रिय सवालों का सामना करने के लिए ये सबसे बेहतर टेकनीक है। एक बार एक दारोगा जी से किसी ने पूछा कि आजकल पुलिस का वैसा रौब रुतबा नहीं रहा, लोग पुलिस से वैसे नहीं ड़रते जैसे पहले डरते थे, इसकी क्या वजह है? दारोगा जी ने वजह बताने के बजाय कहा कि आप हमको यह बताइए कि अगर लोग पुलिस से वैसे नहीं ड़रते जैसे पहले डरते थे, तो इसमें नुकसान किसका है? यह कहते वक्त दारोगा जी की भाव भंगिमा ऐसी थी कि सामने वाला एक ही उत्तर दे सकता था और वही उसने दिया - "नुकसान तो लोगों का ही है।" दारोगा जी ने कहा - "तो फिर।" और इस तरह सवाल के जवाब में सवाल उछाल कर उन्होने मूल सवाल को बेमानी बना दिया। वैसे कुछ लोग अप्रिय सवालों के भँवर में भी शांत और अविचलित भाव से मुस्कराते रह कर सामने वाले को निरस्त्र कर देते हैं।
बहरहाल सवाल तलवार भी है और सवाल ढाल भी है। सवाल ज्ञान कोश की कुंजी भी है और सवाल बेवकूफियों का वाहन भी है और भी सवाल न जाने क्या क्या है। सवाल के स्वरूप को समझने के लिए असल सवाल यह है कि हमारी रुचि क्या है, हमारी क्षमता क्या है, हमारा जीवनदर्शन क्या है और हम में सत-रज-तम का क्या अनुपात है।
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